किन्नरों के जीवन जीने के तरीके, रहन-सहन सब कुछ अलग-अलग होते हैं. आपको बता दें कि किन्नरों में जन्म से लेकर मरण तक अलग-अलग नियम हैं. शायद ही किसी ने किन्नर की शव यात्रा देखी होगी. इसके पीछे भी एक अलग धारणा है, आइए जानते हैं..
- रात में निकाली जाती है किन्नरों की शवयात्रा
- किसी के मरने पर 1 हफ्ते तक खाना नहीं खाते किन्नर
- हंस कर दुनिया से करते हैं विदा
किन्नरों को हमारे समाज में तीसरे लिंग यानी ‘थर्ड जेंडर’ का दर्जा प्राप्त है. ट्रांसजेंडर यानी किन्नरों की दुनिया आम आदमी से हर मायने में अलग होती है. इनके जीवन जीने के तरीके, रहन-सहन सब कुछ अलग होते हैं. बहुत कम लोग इनके जीवन के कुछ अलग तथ्यों के बारे में जानते हैं. आपको बता दें कि किन्नरों में जन्म से लेकर मरण तक अलग-अलग नियम हैं. शायद ही किसी ने किन्नर की शव यात्रा देखी होगी. इसके पीछे भी एक अलग धारणा है, आइए जानते हैं..
नहीं मनाते मातम
किन्नर समाज में किसी की मौत होने पर ये लोग बिल्कुल भी मातम नहीं मनाते, क्योंकि इनका रिवाज है कि मरने से उसे इस नर्क वाले जीवन से छुटकारा मिल गया. इसलिए ये लोग चाहे जितने भी दुखी हों, किसी अपने के चले जाने से मौत पर खुशियां ही मनाते हैं. ये लोग इस खुशी में पैसे भी दान में देते हैं. ये कामना करते हैं कि ईश्वर जाने वाले को अच्छा जन्म दे.
इंसानों से शव को छुपाते हैं किन्नर
जहां ज्यादातर शव यात्रा दिन में निकाली जाती है, वहीं किन्नरों की शव यात्रा रात में निकाली जाती है. दरअसल, किन्नरों की शव यात्रा रात में इसलिए निकाली जाती है ताकि कोई इंसान इनकी शव यात्रा ना देख सके. किन्नर समाज में ऐसा रिवाज रहा है. साथ में ये भी मान्यता है कि इस शव यात्रा में इनके समुदाय के अलावे दूसरे समुदाय के किन्नर भी मौजूद नहीं होने चाहिए. इनकी मान्यता के अनुसार अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाले का जन्म फिर से किन्नर के रूप में ही होगा.
एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते किन्नर
किसी किन्नर की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार से पहले बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है. कहा जाता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है. अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते.