
गोरखपुर। शुभम सिंह
आप स्वयं पर महसूस करिये कि आप जहाँ रहते हों वहाँ टेलीविजन,संगीत,साज-श्रृंगार और दस साल से बड़ी उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी हो,तो क्या आप उस जगह सांस लेना भी चाहेंगे?
तालिबान इस्लाम के शरिया कानून को मानता है और अपने इलाकों में उसे लागू करता है।ये किस तरह का कानून है जो महिलाओं के अधिकारों पर पूरी पाबंदी लगाकर पुरुषों को तानाशाह बनने की छूट देता है?
खौफ के साये में जब बचपन घुटता है तो वहीं बचपन जवानी के दिनों में तानाशाह की भूमिका में नजर आता है।
औरत,जो इस संसार की जननी हो, उसे ही धर्म के नाम पर बंदिशों में जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।ये कैसा अभिशाप है??आज वे देश क्यों मौन हैं जो कभी आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग करते थे?तालिबान के राज में क्या अलकायदा और आईएस का खतरा समाप्त हो जाएगा?क्या अफगानिस्तान इनका अड्डा नहीं बनेगा?? उनकी चुप्पी भी कहीं न कहीं इतिहास के सवालों के घेरे में आएगी।हर वह धर्म और उस धर्म का कानून मानवता का विरोधी है जहाँ आजादी नहीं है।हर वह चरमपंथी या कट्टरपंथी विचारधारा किसी भी समाज का भला नहीं कर सकती जिसमें मानवता सिसक-सिसक कर दम तोड़ती हो!आप सभी को इसके खिलाफ बोलना होगा क्योंकि बोलने की आजादी हमें खुदा या भगवान जन्म लेने से ही देता है।अगर आप आज नहीं बोलेंगे तो आपके मरने के उपरांत न तो बहत्तर हूरें आपका स्वागत करेंगी और न आपकी आने वाली पीढियां आपका नाम सम्मान से लेंगीं।इसलिए आपको बोलने का जोखिम उठाना पड़ेगा.. !”
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