शीर्ष अदालत ने पहले निर्देश दिया था कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों की गवाही या तो जिला अदालत परिसर या उस जिले में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज की जाए, जहां बच्चा रहता है.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास नीति (rehabilitation policy) तैयार करने के सुझावों को लागू करने का निर्देश दिया और साथ ही कहा कि ये कागज पर नहीं रहना चाहिए. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि अब तक केवल 17,914 सड़क पर रहने वाले बच्चों के बारे में जानकारी दी गई है जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है. शीर्ष अदालत ने दोहराया कि संबंधित अधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) के वेब पोर्टल पर आवश्यक सामग्री को बिना किसी चूक के अपडेट करना होगा.
शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि बच्चों को बचाना कोई अस्थाई कवायद नहीं है और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनका पुनर्वास किया जाए. पीठ ने कहा कि हमने उन सुझावों की सावधानीपूर्वक जांच की है जो सभी स्थितियों से निपटने के लिए प्रकृति में व्यापक हैं. राज्य सरकारों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों के अधीन एनसीपीसीआर द्वारा दिए गए सुझावों को राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाएगा. एनसीपीसीआर को सुझावों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए महीने में एक बार समय-समय पर समीक्षा करने का निर्देश दिया जाता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सूचना का संग्रह सड़क की स्थितियों में बेसहारा बच्चों के लिए कुछ योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए है और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस उद्देश्य के लिए एनसीपीसीआर को पूर्ण सहयोग देने का निर्देश दिया है. एनसीपीसीआर की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने आरोप लगाया कि राज्यों के अधिकारी निरीक्षण और जांच के दौरान सहयोग नहीं कर रहे हैं. मामले में एक पक्ष की ओर से अधिवक्ता टीके नायक पेश हुए. मामले को चार हफ्ते बाद अगली सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है.
शीर्ष अदालत ने पहले निर्देश दिया था कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों की गवाही या तो जिला अदालत परिसर या उस जिले में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज की जाए, जहां बच्चा रहता है. साथ ही कहा था कि ये ट्रायल कोर्ट में सबूत देने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करने वाले तस्करी के शिकार लोगों को होने वाली कठिनाइयों को कम करने से संबंधित है.