खबरी इंडिया, गोरखपुर।
विकास को पहले सिर्फ आर्थिक विकास से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन मानव विकास सूचकांक की अवधारणा आने के बाद विकास को गुणात्मक रूप में देखा जाने लगा। विशेषकर ग्रामीण विकास के लिए यह जरूरी है, कि वहाँ के सामाजिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाए। ग्रामीण विकास के लिए स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा दिया जाना होगा। सन 1950-1986 तक का समय गांवों के अध्ययन से संबंधित रहा जिसमें विभिन्न समाजशास्त्रियों ने विभिन्न आयामों पर अध्ययन किया। आज पुनः इन अध्ययनों की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि सभी गांवों की समस्या एक जैसी नहीं है, लेकिन फिर भी सभी गांव में कुछ मूलभूत समस्याएं सामान्य होती है। योजना बनाने में इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
यक्त वक्तव्य दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में चल रहे वैल्यू एडेड कोर्स को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि एवं इंडियन सोसियोलॉजिकल सोसाइटी के मैनेजिंग कमेटी की नवनिर्वाचित सदस्य एवं राँची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर विनीता सिंह ने दिया।
विभागाध्यक्ष प्रो. संगीता पाण्डेय ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा कि विकास के बदलते आयामों के अनुरूप समाज में अनुकूलता लाने का प्रयास करना जरुरी है।
तृतीय सत्र में समाजशास्त्र विभाग के डॉ पवन कुमार ने रूरल सस्टेनबिलिटी एन्ड जेंडर डिस्कोर्स विषय पर उद्बोधन देते हुए कहा कि ग्रामीण विकास के लिए वहाँ के युवाओं को सामुदायिक भावना के अनुरूप प्रयास करना होगा और योजनाओं को महिला केंद्रित बनाना होगा।द्वितीय सत्र में प्रतिभागियों द्वारा इंटरैक्टिव सेशन में सहभागिता की गई।
अंत में आभार ज्ञापन डॉ. मनीष पाण्डेय ने किया