• January 22, 2025
 किडनी हेल्दी रखना है तो अनावश्यक पेन किलर लेने से बचे
  • सही इलाज और डायलिसिस से एक्यूट किडनी फेल्योर पर पाया जा सकता है काबू
  • दुनिया में बीमारियों से होने वाली मौतों के किडनी यानी गुर्दा की बीमारी छठवां बड़ा कारण

खबरी इंडिया, नई दिल्‍ली। दुनिया में बीमारियों से होने वाली मौतों के किडनी यानी गुर्दा की बीमारी छठवां बड़ा कारण है। ऐसे में तेजी से बढ़ती किडनी की बीमारी से बचाव ही सबसे सुरक्षित उपाय है। किडनी की बीमारी की चपेट में आने के बाद भी लोगों को कभी-कभी वर्षों तक इसकी भनक नहीं लगती, इसीलिए गुर्दे की बीमारी को ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है। यही कारण है कि ग्लोबल बर्डन डिजीज (GBD) ने अपनी एक स्‍टडी में क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) को भारत में बीमारियों से होने वाली मौतों का आठवां सबसे बड़ा कारण माना है। नेशनल हेल्‍थ पोर्टल के अनुसार, विश्व स्तर पर क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) मौत का छठवां सबसे बड़ा कारण है और एक्यूट किडनी इंजरी (AKI) के कारण सालाना लगभग 1.7 मिलियन लोगों की मौत होती है।

08c43bc8-e96b-4f66-a9e1-d7eddc544cc3
345685e0-7355-4d0f-ae5a-080aef6d8bab
5d70d86f-9cf3-4eaf-b04a-05211cf7d3c4
IMG-20240117-WA0007
IMG-20240117-WA0006
IMG-20240117-WA0008
IMG-20240120-WA0039
धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल, दिल्ली की डॉ. सुमन लता, डीएम (नेफ्रोलॉजी)

धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल, दिल्ली की डॉ. सुमन लता, डीएम (नेफ्रोलॉजी) के अनुसार, मेटाबॉलिज्‍म के प्रॉसेस से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकालना और सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम व फास्‍फोरस जैसे इलेक्‍ट्रोलाइट्स को संतुलन बनाए रखना किडनी का महत्‍वपूर्ण काम है। मसलन, शरीर में पानी, एसिड और सॉल्‍ट का फिल्टर करते हुए हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम किडनी करती है। किडनी भोजन के पाचन के बाद शरीर से यूरिया, क्रिएटिनिन जैसे हानिकारक नाइट्रोजन युक्‍त अपशिष्ट पदार्थों को खून से फिल्‍टर कर पेशाब के रास्ते बाहर निकालती है।
किडनी लाल रूधिर कणिकाओं के जरिए खून में हीमोग्‍लोबिन बनाने का काम करती है। दरअसल, किडनी एरिथ्रोपोएटिन नामक एक हार्मोन बनाती है। यह हार्मोन बोनमैरो के साथ मिलकर हीमोग्‍लोबिन बनाता है। हड्डियों की मजबूत रखने में किडनी की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। दरअसल, किडनी कैल्सियम और फास्‍फोरस जैसे महत्‍वपूर्ण मिलिरल्‍स के जरिए शरीर में एक ऐसा माहौल तैयार करती हैं, जिससे हड्डियां स्‍वस्‍थ्‍य और मजबूत रहें।
गुर्दा रोग के लक्षण :
प्राथमिक चरण में आमतौर पर किडनी खराब होने के लक्षण पकड़ में नहीं आते। फिर भी कुछ लक्षण किडनी में गड़बड़ी होने की ओर इशारा जरूर करते हैं, जिनसे व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए और डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

• शरीर के हिस्सों में जैसे-चेहरे, पैर और टखनों में सूजन आना। कमजोरी और थकान महसूस करना।
• भूख कम लगना, पेट में जलन और दर्द रहना, घबराहट रहना।
• मांसपेशियों में खिंचाव और ऐंठन होना।
• कमर के नीचे दर्द होना, पेशाब करने में समस्या आना।
• रात में बार-बार यूरीन डिस्चार्ज की इच्छा होना।

बचाव से किडनी रहेगी स्वस्थ
• क्रॉनिक डिजीज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें और वजन नियंत्रित रखें।
• ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर लेवल मेंटेन करें।
• साल में एक बार किडनी चेकअप जरूर कराएं।
• मेडिकल एडवाइस के बिना कोई दवाई न लें।
• ध्रूमपान और नशीले पदार्थों का सेवन न करें।

सही इलाज और डायलिसिस से एक्यूट किडनी फेल्योर पर पाया जा सकता है काबू

डॉ राजेश अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट और चीफ ऑफ एक्शन किडनी ट्रांसप्लांट और डायलिसिस विभाग, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटयूट दिल्ली

यदि किडनी का रोग है, तो ब्लड और यूरिन टेस्ट से इसका पता लगाया जा सकता हैगुर्दे में होने वाले रोग के बारे में बता रहे हैं डॉ राजेश अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट और चीफ ऑफ एक्शन किडनी ट्रांसप्लांट और डायलिसिस विभाग, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटयूट दिल्ली यदि मरीज की उम्र ज्यादा न हो, गंभीर हृदय रोग न हो, मानसिक बीमारी न हो या अन्य कोई गंभीर बीमारी न हो तो अधिकांश मरीज अंतिम चरण के किडनी फेलियर में ट्रांसप्लांट करा सकते हैं। किडनी की बीमारियों के बारे में बताया एक्यूट किडनी फेल्योर अनावश्यक रूप से पेनकिलर मेडिसिन लेने और एलर्जी के चलते यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है। इसमें किडनी अचानक काम करना बंद कर देती है, जिसका असर पेशेंट की सेहत पर पड़ता है। एक्यूट किडनी फेल्योर पर सही ट्रीटमेंट और डायलिसिस से काबू पाया जा सकता है।
क्रॉनिक किडनी फेल्योर:
डायबिटीज, ब्लड प्रेशर के मरीज क्रॉनिक किडनी फेल्योर का शिकार हो सकते हैं। इसमें किडनी धीरे-धीरे खराब होती है, लंबे समय तक प्रभावित रहने पर सूखती जाती है और दुबारा ठीक नहीं हो पाती। दोनों किडनी 60% से कम काम करने लगती हैं। किडनी ठीक से काम नहीं कर पाने के कारण पेशेंट के ब्लड में क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड जैसे विषैले पदार्थ बाहर न निकलकर शरीर में ही स्टोर होना शुरू हो जाते हैं, जिससे किडनी फेल्योर हो सकता है।
किडनी स्टोन:
इस ऑर्गन के ठीक से काम नहीं करने की वजह से किडनी में यूरिक एसिड जमा होने लगता है, जो धीरे-धीरे स्टोन का रूप ले लेता है। स्टोन होने पर पेशेंट पेट में दर्द की शिकायत करता है। किडनी में होने वाले स्टोन अगर छोटे आकार के हैं तो अधिक पानी पीने से अपने आप शरीर से बाहर निकल जाते हैं जबकि बड़े स्टोन के लिए सर्जरी की जाती है।

डा. सुदीप सिंह सचदेव, डीएम (नेफ्रोलॉजी) नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, गुरुग्राम

नेफ्रोटिक सिंड्रोम:
इस डिजीज में यूरीन में प्रोटीन लीकेज होने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जाता है। इससे शरीर के कई भागों में सूजन आ जाती है और किडनी फेल्योर का खतरा रहता है। इसमें किडनी के छिद्र बड़े हो जाते हैं। यह बीमारी बच्चों में भी देखी जाती है।
डा. सुदीप सिंह सचदेव, डीएम (नेफ्रोलॉजी) नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, गुरुग्राम ने बताया कि आईआईटी कानपुर व खड़गपुर की डेटा के मुताबिक जून और जुलाई में कोरोना के फोर्थ वेब के आने की आशंका जताई जा रही है। यह कितना घातक होगा यह कोई नहीं जानता है। किडनी के रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही काफी कमजोर होती है, ऐसे में कोरोना वायरस इन लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। इसके अलावा जिन लोगों को क्रोनिक किडनी डिजीज की समस्या है या फिर वह डायलिसिस पर हैं, उन्हें कोविड-19 के गंभीर संक्रमण का जोखिम अधिक होता है। इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण किसी भी संक्रमण से मुकाबला कर पाना इनके लिए काफी कठिन हो जाता है।
किडनी के जो रोगी डायलिसिस पर हैं उन्हें संक्रमण का ज्यादा खतरा हो सकता है। चूंकि डायलिसिस को टाला नहीं जा सकता है, ऐसे में मरीजों को बाहर निकलते समय अच्छे किस्म का मास्क पहनना चाहिए। शरीर में किसी भी तरह के असामान्य बदलावों के बारे में फौरन डॉक्टर से सलाह लें। डायलिसिस के दौरान बाहर का कुछ भी न खाएं।
जिन रोगियों का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ हो उन्हें खासी सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे रोगियों को एंटी-रिजेक्शन दवाएं लेते रहना चाहिए। किडनी बदलवाने वाले रोगियों को कोरोना संक्रमण का खतरा, किडनी के अन्य रोगियों से ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों को खुद को ज्यादा से ज्यादा समय आइसोलेशन में रखना चाहिए। जो लोग कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाएं हैं वो लोग अपने डाक्टर की सलाह लेकर डोज अवश्य लगवा लें।

Youtube Videos

Related post