गोरखपुर। सहाना के एक साल के बच्चे के पिता का रहस्य अब पुलिस डीएनए जांच से सुलझाएगी। अलग-अलग दावों और दस्तावेजों के हिसाब से तीन पिता का नाम सामने आने के बाद डीएनए ही इस गुत्थी को सुलझाने का आखिरी रास्ता है।
एसपी सिटी सोनम कुमार ने बताया कि सहाना की मां व अन्य की मांग पर बच्चे और आरोपित के डीएनए सैंपल लेकर कानूनी तरीके से डीएनए जांच कराई जाएगी। महिला जिला अस्पताल में संविदाकर्मी के रूप में काम करने वाली सहाना उर्फ सुहानी अब इस दुनिया से चली गई है। उसकी मौत का रहस्य अभी रहस्य ही बना हुआ है कि उसके बच्चे के पिता को लेकर भी मामला उलझ गया है। मां-बहन और भाई सहाना के मासूम बेटे को न्याय दिलाने में जुट गए हैं। इस उलझन को सुलझाने को डीएनए जांच ही आखिरी रास्ता है जिसके लिए पुलिस भी तैयार हो गई है।
*परिवार ने कहा दारोगा का ही है बच्चा;*
सहाना की मां व अन्य का कहना है कि यह बच्चा दरोगा राजेन्द्र सिंह का ही है। सहाना की मकान मालकिन का भी यही कहना है। वहीं जब बच्चा पैदा हुआ था तब सहाना ने भी परिवारवालों को बताया था कि दरोगा ही बच्चे के पिता हैं। मकान मालकिन ने कहा कि दो साल से सहाना उनके यहां किरायदार के रूप में रह रही थी। वहीं दरोगा राजेन्द्र सिंह ने बताया था कि यह बच्चा खलीलाबाद के रहने वाले शमीर (सुहाना का पति) का है। वहीं दूसरी तरफ जिला अस्पताल के पास स्थित जिस हास्पिटल में सहाना का बच्चा पैदा हुआ है वहां से जारी जन्म प्रमाणपत्र में बच्चे के पिता के रूप में बबलू सिंह का नाम दर्ज है। अब बबलू सिंह का नाम आने से बच्चे के पिता को लेकर रहस्य और बढ़ गया है। सवाल यह है कि सहाना कुछ छिपा रही थी या फिर इस कहानी में कोई और भी किरदार है। हालांकि डीएनए टेस्ट के जरिये पुलिस इस रहस्य को सुलझाने में जुट गई है।
*दूसरे दिन भी दरोगा से मिलने कोई नहीं पहुंचा;*
दरोगा राजेन्द्र सिंह से बुधवार को भी जेल में कोई मुलाकात नहीं हुई। जिस कपड़े में राजेन्द्र सिंह जेल गए हैं उसी कपड़े में उनका दूसरा दिन बीता। वह जेल में काफी परेशान दिखे तथा अपनों की राह तलाशते रहे। किसी की मुलाकात न होने पर उन्होंने जेलर से गुहार लगाई। जेलर ने उन्हें कुछ जरूरी समान दिलाया। राजेन्द्र सिंह ने कहा कि किसी तरह से उनके घरवालों को मुलाकात के लिए सूचना भेजवा दीजिए। माना जा रहा है कि राजेन्द्र सिंह की इस हरकत के बाद घरवालों ने उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दिया है। कोतवाली थाना तक उनका बेटा आया था पर जब पता चला कि पिता को किस वजह से जेल भेजा जा रहा है उसके बाद उसने भी दो दिन से दूरी बना ली है। राजेन्द्र सिंह बलिया के रहने वाले हैं और मुलाकात के लिए तरस रहे हैं।
*हमेेशा दूसरों की मदद करती थी सहाना*
सहाना पीड़ितों व बीमारों की मददगार रही। उससे दूसरों का दर्द देखा नहीं जाता था। अपने प्रसव के महज तीन महीने पूरे होते ही वह जिला महिला अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद हो गई थी। महीना फरवरी का था। इसके बाद कोरोना से चहूंओर हो रही ताबड़तोड़ मौतों के बीच आउटसोर्सिंग पर तैनाती होने के बावजूद वह खुद व अपने मासूम के जिंदगी की परवाह नहीं करते हुए ड्यूटी की। महिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उसे छह महीने का प्रसूता अवकाश मिला था। लेकिन वह कोरोना योद्धा बनी रही। जिला महिला अस्पताल की आउटसोर्सिंग कर्मचारी रही सहाना को पिछले साल 24 अक्टूबर को निजी अस्पताल में प्रसव हुआ था। इसके बाद वह प्रसूता अवकाश पर चली गई। जनवरी में कोरोना के बढ़ते मामले के बीच वह अपने मासूम बेटे को सीने से लगाकर ड्यूटी करने के लिए जिला महिला अस्पताल पहुंच गई थी। डॉ. सुषमा बताती हैं कि कोरोना के बढ़ते मामले को देखकर सहाना को घर भेजा गया था। बावजूद वह सभी का फोन पर हाल-पता लेती रहती थी। जैसे ही फरवरी का महीना शुरू हुआ। सहाना दोबारा बच्चे को सीने से लगाए अस्पताल पहुंच आई और ड्यूटी शुरू कर दी। सहाना के कोरोना योद्धा रहने की कहानी सुनाते हुए डॉक्टर सुषमा फफक पड़ी। उन्होंने रोते हुए बताया कि अब तो सहाना हम लोगों के बीच नहीं है, लेकिन वह लोगों की जो सेवा की है। उसकी तपस्या व्यर्थ नहीं जाएगी।