![नहीं रहीं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा: 1200 बच्चों की ‘मां’ सिंधुताई सपकाल का निधन, आईए जानते हैं कौन है सिंधुताई](https://khabariindia.com/wp-content/uploads/2022/01/images-2.jpg)
पद्मश्री पुरस्कार विजेता सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया. बताया जा रहा है कि दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया है.
विनीत राय, गोरखपुर।
नहीं रहीं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा:पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का 73 साल की उम्र में पुणे में निधन, इनके थे 1500 बच्चे,150 बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के रूप में फेमस पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का मंगलवार रात पुणे में निधन हो गया। 73 वर्षीय सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था। पिछले साल उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया था। जानकारी के मुताबिक, उन्होंने शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली है। कल पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। हॉस्पिटल की ओर से जल्द ही एक आधिकारिक बयान भी जारी होगा।
बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि इनके 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधु ताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजारी दी, उनका पेट भरने के लिए कभी ट्रेनों में भीख तक मांगी।
जानकारी के मुताबिक, एक महीने पहले सिंधुताई सपकाल का हार्निया का ऑप्रेशन हुआ था. उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल में चल रहा था. जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली. यह जानकारी पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ शैलेश पुंतंबेकर ने दी है.
अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए सड़कों पर मांगी भीख
अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए उन्होंने सड़कों पर भीख तक मांगी। पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है। उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की है।
सिंधुताई सपकाल को ‘माई’ कहा जाता था. उन्होंने ने पुणे में सनमती बाल निकेतन संस्था नाम का एक अनाथालय चलाया है. उन्होंने अपने जीवन में 1,200 से ज्यादा अनाथ बच्चों को गोद लिया. इसके साथ ही उनको पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया. इनमें से कई लोग आज खुद अनाथालय चलाते हैं. सिंधुताई को अपनी सामाजिक सेवा के लिए कई पुरस्कार मिले हैं.
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सिंधु ताई कौन हैं?
सिंधु ताई का महाराष्ट्र के वर्धा जिले के चरवाहे परिवार से संबंध है, सिंधु ताई का बचपन वर्धा में बीता, उनका बचपन बहुत सारे कष्टों के बीच बीता. जब सिंधु 9 साल की थीं तो उनकी शादी एक बड़े उम्र के व्यक्ति से कर दी गई. सिंधु ताई ने केवल चौथी क्लास तक पढ़ाई की थी, वह आगे भी पढ़ना चाहती थीं लेकिन शादी के बाद ससुराल वालों ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया.
सिंधु ताई को ससुराल और मायके में नहीं मिली जगह
पढ़ाई से लेकर ऐसे कई छोटे बड़े मामले आए, जिसमें सिंधु ताई को हमेशा अन्याय का सामना करना पड़ा. उन्होंने इसके खिलाफ आवाज भी उठाई लेकिन अंजाम ये हुआ कि जब वह प्रेग्नेंट थीं तो ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया. इतना ही नहीं ससुराल वालों ने घर से निकाला लेकिन उनके मायके वालों ने भी अपने यहा रखने से मना कर दिया.
सिंधु ताई को मिला सम्मान
उनके इस नेक काम के लिए सिंधु ताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान मिला है. उन्हें अब तक मिले सम्मान से प्राप्त हुई रकम को सिंधु ताई ने अपने बच्चों के लालन पोषण में खर्च कर दिया. उन्हें डी वाई इंस्टिटूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है. उनके जीवन पर मराठी फिल्म मी सिंधुताई सपकल बनी है जो साल 2010 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया जा चुका है.
ऐसे मिली बेघर बच्चों को घर देने की प्रेरणा
ट्रेन में भीख मांगने के बाद वे स्टेशन पर ही रहती थीं। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में ‘अनाथ’ शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते हैं। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।
सिंधुताई को 700 से ज्यादा पुरस्कार मिले
पद्मश्री सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को DY पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म ‘मी सिंधुताई सपकाल’ साल 2010 में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था।
अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए सड़कों पर मांगी भीख
अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए उन्होंने सड़कों पर भीख तक मांगी। पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है। उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की है।
ट्रेन में भीख मांगी, श्मशान घाट से चिता की रोटी खाई
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक सामान्य गोपालक परिवार में सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर, 1948 को हुआ था। रूढ़िवादी परिवार होने के कारण सिंधुताई को चौथी क्लास में स्कूल छोड़ना पड़ा। 10 साल की उम्र में 20 साल के व्यक्ति से शादी हुई। कुछ साल बाद वह गर्भवती हो गई। पति ने 9वें महीने में पेट में लात मारी और उन्हें घर से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने बेहोशी की हालत में गायों के बीच एक बेटी को जन्म दिया फिर अपने हाथ से नाल भी काटी। बेघर होने के चलते उन्होंने बेटी को स्टेशन पर छोड़ दिया। इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने आत्महत्या करने की भी सोची। बाद में अपना पेट भरने के लिए ट्रेन में भीख भी मांगी। कभी-कभी श्मशान घाट में चिता की रोटी भी खाई।
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