• January 20, 2025
 50 दिनों में ट्यूमर (प्रोस्टेट कैंसर) पूरी तरह से कम करने वाले मोलेक्युल की खोज

नई दिल्ली: आईआईटी गांधीनगर ने एक ऐसे मोलेक्युल की खोज की है, जिसमें 50 दिनों में ट्यूमर (प्रोस्टेट कैंसर) पूरी तरह से कम करने की बड़ी क्षमता है।

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आईआईटी गांधीनगर के डायरेक्टर सुधीर कुमार जैन जो अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के नए वाइस चांसलर नियुक्त किए गए हैं, उन्होंने बीएचयू और आईआईटी जीएन से जुड़े विषयों पर आईएएनएस विशेष बात की। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश।

प्रश्‍न- आईआईटी जीएन की रिसर्च कैसे आम आदमी के जीवन को आसान और अधिक सुविधाजनक बनाते हैं।

उत्तर- हमारी एक टीम ने जे 54 नामक एक नए मोलेक्युल की खोज की है, जिसने 50 दिनों में ट्यूमर (प्रोस्टेट कैंसर) को पूरी तरह से कम करने की बड़ी क्षमता दिखाई है। वहीं एक पीएचडी छात्र और उनके सुपरवाइजिंग संकाय ने एक गैर-विद्युत किफायती जल शोधन प्रणाली विकसित की। यह 99 फीसदी से अधिक बैक्टीरिया को बिना बिजली के ही पानी से हटा सकती है। यह अविकसित और दूरदराज के क्षेत्रों में, जहां पीने योग्य पानी दुर्लभ होता है, वहां बहुत उपयोगी हो सकता है। शोधकतार्ओं की एक टीम ने अधिक व्यायाम करने के कारण होने वाली घातक दुर्घटनाओं (हार्टअटैक) के जोखिम को रोकने के लिए एक वर्चुअल रियलिटी आधारित ट्रेडमिल व्यायाम प्लेटफॉर्म का आविष्कार किया है।

प्रश्‍न-आपको बीएचयू का नया कुलपति नियुक्त किया गया है आप अपनी इस नई भूमिका के बारे में क्या सोचते हैं।

उत्तर- मुझे बीएचयू के साथ जुड़कर बहुत गर्व हो रहा है, जो उत्कृष्ट विरासत, प्रतिष्ठा और स्तर का संस्थान है। मैं बीएचयू को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने और इसे दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की लीग में आगे बढ़ाने के लिए छात्रों और सहकर्मियों के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं। मैं बीएचयू की उन्नति और कायाकल्प के लिए इसके पूर्व छात्रों और शुभचिंतकों के बड़े नेटवर्क के साथ जुड़ने और भागीदारी करने की भी उम्मीद करता हूं।

प्रश्‍न- आईआईटी की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाएँ क्या हैं?

उत्तर- हम राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत संस्थान में 650 टीएफ सुपर कंप्यूटिंग सिस्टम की स्थापना के लिए सी-डैक के साथ काम कर रहे हैं। हमने परिसर के अनुभव को और बढ़ाने और अकादमिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वाकांक्षी आर्ट ऑन कैंपस परियोजना भी शुरू की है।

प्रश्‍न- आईआईटी जीएन ने कोरोना से लड़ने के लिए कोई शोध या नवाचार किया है।

उत्तर- आईआईटी की एक टीम ने एक एंटी-वायरल सतह कोटिंग सामग्री विकसित की जो नॉन-पेथोजेनिक वायरस पर अत्यधिक प्रभावी है। टीम कोरोना वायरस के खिलाफ इस कोटिंग के परीक्षण की प्रक्रिया कर रही है। यह कोटिंग एक बार किसी सतह पर कर देने से कई दिनों तक उस सतह पर वायरस का असर नहीं होता है।

आईआईटी की एक अन्य टीम ने कोविड-19 डैशबोर्ड विकसित किया है जो सामुदायिक संक्रमणों को रोकने में मदद कर सकता है। चेस्ट एक्स-रे से कोविड-19 का पता लगाने के लिए एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित डीप लनिर्ंग उपकरण विकसित किया, जिसका उपयोग मेडिकल परीक्षण से पहले त्वरित प्रारंभिक निदान के लिए किया जा सकता है।

प्रश्‍न- आईआईटी गांधीनगर की बड़ी उपलब्धियां क्या हैं।

उत्तर- हमारे 85 प्रतिशत संकाय ने अपनी डिग्री या स्नातकोत्तर अनुभव विदेशी संस्थानों से प्राप्त किया है हमारे 40 फीसदी से अधिक स्नातक छात्र विदेश में पढ़ने या तालीम लेने जैसे अन्य अवसर प्राप्त करते हैं। हमारा अभिनव पाठ्यक्रम लनिर्ंग-बाय-डूईंग पर जोर देता है, छात्रों को काफी लचीलापन प्रदान करता है और छात्रों को शाखा परिवर्तन विकल्प देने में उदार है।

इन वर्षों में, हमने एक मजबूत इंटर्डिसिप्लिनरी इकोसिस्टम विकसित किया है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे 10 फीसदी संकाय की नियुक्तियां बहु-विषयक हैं,हमारी आईआईटी में लगभग 14 प्रतिशत पीएचडी सलाहकार विषय के बाहर से होते हैं, हमारे 13 प्रतिशत शोध प्रकाशनों के लेखक इंटर्डिसिप्लिनरी हैं, और लगभग 21 प्रतिशत परियोजनाओं में पीआई और सह-पीआई बहु-विषयक होते हैं। टाइम्स हायर एजुकेशन वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022 में हमें भारत में 7वां स्थान दिया गया है। हमारे 400 एकड़ के ह्लग्रीन एंड जीरो वेस्ट कैंपसह्व ने कई पुरस्कार भी जीते हैं।

प्रश्‍न- कोरोना और लॉकडाउन ने कामकाज को कैसे प्रभावित किया, संस्थान ने इस स्थिति का प्रबंधन कैसे किया।

उत्तर- दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, महामारी हमारे संचालन के लिए बेहद विघटनकारी थी। अब हमारे अधिकांश छात्र कैंपस में वापस आ गए हैं। हम जनवरी में पूरी तरह से व्यक्तिगत शिक्षा में स्थानांतरित हो रहे हैं।

प्रश्‍न- ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के लिए आईआईटी जीएन में क्या हो रहा है।

उत्तर- अनुसंधान के मोर्चे पर, मैने पहले उल्लेख किए उदाहरणों के अलावा, एक शोध दल ने हाल ही में अंतरिक्ष और रक्षा अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाने वाले ईंधन के लिए बोरॉन-आधारित नैनो-एडिटिव्स का एक नया वर्ग विकसित किया है। यह एक बेहद महत्वपूर्ण सफलता है क्योंकि यह एक ऊर्जा-कुशल ईंधन है, जो अतिरिक्त पेलोड, उपग्रहों को कक्षा में ले जाने में मदद कर सकता है क्योंकि यह काफी हल्का है।

हमारे कई छात्रों ने उद्यमिता का विकल्प चुना है और अपने करियर की शुरूआत में ही ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक, 3 डी कंक्रीट प्रिंटिंग तकनीक, फिनटेक, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर तकनीक आदि जैसे क्षेत्रों में स्टार्ट-अप की स्थापना की है। हमने एक इन्क्यूबेशन सेंटर, आईआईटी गांधीनगर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप सेंटर स्थापित किया है, जो नवाचार, उद्यमिता और प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण की गतिविधियों को बढ़ावा देता है।

नीव नामक एक कार्यक्रम में हमने आसपास के गांवों की 2500 से अधिक महिलाओं और युवाओं को व्यावसायिक कौशल विकास प्रशिक्षण और उद्यमिता परामर्श प्रदान किया है।

प्रश्‍न- क्या आपने कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय सहयोग किया है, यदि हां तो किस लिए।

उत्तर- हमारे अंतरराष्ट्रीय सहयोग छात्र और संकाय आदान-प्रदान के लिए एवं अनुसंधान सहयोग के रूप में दुनिया भर के 40 से अधिक विश्वविद्यालयों, उद्योगों और अनुसंधान एवं विकास संगठनों में फैले हुए हैं, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूके, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल, जापान, इटली, दक्षिण कोरिया और अन्य शामिल हैं। हमारे 10 से 15 प्रतिशत फैकल्टी विजिटिंग फैकल्टी हैं और मुख्यत विदेश से है। जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारे स्नातक छात्रों में से 45 फीसदी और हमारे पीएचडी के 75 फीसदी विदेशी अवसर प्राप्त करते हैं। यह केवल इसलिए संभव है क्योंकि हमारे पास एक बहुत ही जीवंत अंतर्राष्ट्रीय एक्स्चेंज और सहयोग कार्यक्रम है।

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