• January 14, 2025
 पढ़िए *मनस्वी अपर्णा* की गज़ल ” औरों जैसी बात कहां से लाएं हम”

औरों जैसी बात कहां से लाएं हम
दुनिया के सांचें में क्यूं ढल जाएं हम //१//

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हमको मनमर्ज़ी करने की आदत है
इस आदत से इज़्ज़त कैसे पाएं हम //२//

बदनामी से अपना गहरा नाता है
आ जाती है साथ जहां भी जाएं हम //३//

जंग छिड़ी है ज़ह्नों दिल की आपस में
दोनों अपने हैं किसको समझाएं हम //४//

क़ुर्बत भी मंज़ूर नहीं और दूरी भी
दुहरी उलझन है कैसे सुलझाएं हम //५//

इस दिल को दरकार तुम्हारी है जानां
ख़ुद को कब तक यूं तन्हा बहलाएं हम //६//

कौन पराए दर्द में शामिल होता है
किसको अपना जलता ज़ख्म दिखाएं हम //७//

रोने से कुछ पा लेना गर मुमकिन है
कितने अश्क़ बताओ और बहाएं हम //८//

तुम तो कितनी आसानी से भूल गए
ऐसी हिम्मत यार कहां से लाएं हम //९//

*मनस्वी अपर्णा*

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