
औरों जैसी बात कहां से लाएं हम
दुनिया के सांचें में क्यूं ढल जाएं हम //१//
हमको मनमर्ज़ी करने की आदत है
इस आदत से इज़्ज़त कैसे पाएं हम //२//
बदनामी से अपना गहरा नाता है
आ जाती है साथ जहां भी जाएं हम //३//
जंग छिड़ी है ज़ह्नों दिल की आपस में
दोनों अपने हैं किसको समझाएं हम //४//
क़ुर्बत भी मंज़ूर नहीं और दूरी भी
दुहरी उलझन है कैसे सुलझाएं हम //५//
इस दिल को दरकार तुम्हारी है जानां
ख़ुद को कब तक यूं तन्हा बहलाएं हम //६//
कौन पराए दर्द में शामिल होता है
किसको अपना जलता ज़ख्म दिखाएं हम //७//
रोने से कुछ पा लेना गर मुमकिन है
कितने अश्क़ बताओ और बहाएं हम //८//
तुम तो कितनी आसानी से भूल गए
ऐसी हिम्मत यार कहां से लाएं हम //९//
*मनस्वी अपर्णा*
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