विनीत राय, गोरखपुर।
बड़ी होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है। छोटी होली वाले दिन होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत से जोड़ कर देखा जाता है। इस बार ये पर्व 28 मार्च को मनाया जाएगा। शाम के समय प्रदोष काल में होली जलाई जाएगी। इसके बाद अगले दिन यानी 29 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी। जिसे धुलण्डी नाम से भी जाना जाता है।
कैसे किया जाता है होलिका दहन?
होलिका दहन वाली जगह पर कुछ दिनों पहले एक सूखा पेड़ रख दिया जाता है. होलिका दहन के दिन उस पर लकड़ियां, घास, पुआल और उपले रखकर अग्नि दी जाती है. होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य से अग्नि प्रज्जवलित करानी चाहिए. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं. इसके अगले दिन एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाया जाता है.
होली से जुड़ी पौराणिक कथा होली से जुड़ी अनेक कथाएं इतिहास-पुराण में पाई जाती हैं. इसमें हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है. कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती
होलिका दहन मुहूर्त: होलिका दहन शुभ मुहूर्त में करने की सलाह दी जाती है। भद्रा के समय में होलिका दहन नहीं किया जाता है। इस बार दोपहर 1 बजे तक भद्रा समाप्त हो जाएगा। जिस कारण आप प्रदोष काल शाम के समय में 6 बजकर 37 मिनट से 8 बजकर 56 मिनट के बीच होलिका दहन कर सकते हैं। वहीं होलिका दहन के दिन शुभ योगों में से सर्वोत्तम योग सर्वार्थ सिद्धी योग भी लगा हुआ है।
पूजा विधि: होलिका दहन जिस स्थान पर करना है, उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें। पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें। साथ में नई फसलें भी रखी जाती हैं। जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां। कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें। ये मंत्र पढ़ें- अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।। और पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें।
होली की पूजा विधि: रंगवाली होली के दिन प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं का पूजन करें। होलिका की राख की वंदना करके उसे अपने शरीर में लगा लें। इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें। सभी पितरों को नमन करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में सुख-समृद्धि बनाए रखें।