पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है, जिसे 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर वर्तमान में केन्द्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने बताया किमहात्मा गांधी ने एक बार कहा था, “पृथ्वी, वायु, भूमि और जल हमारे पूर्वजों की विरासत नहीं हैं, बल्कि ये हमारे बच्चों द्वाराऋणस्वरूप हैं। इसलिए, हमें उन्हें कम से कम वही और वैसा ही सौंपना होगा जैसा कि यह हमें सौंपा गया था। ”
जंगल में आग लगने की लगातार घटनाएं, आकस्मिक बाढ़, बर्फीली हवाएं, अत्यधिक खराब मौसम की स्थिति जलवायु में होने वाले परिवर्तन के अशुभ संकेत हैं। इससे भी अधिक वर्तमान वैश्विक महामारी ने समूची मानवता की नींद हराम करके रख दी है। हम ऐतिहासिक काल में जी रहे हैं क्योंकि विनाशी वैश्विक महामारी ने पूरी मानवता को अपनी प्राथमिकताओं के बारे में पुन: विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस संकट की घड़ी में आशा की एक किरण दिखाई देती है क्योंकि वैश्विक महामारी नेहमारा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अपनी योजनाओं को पुन: तैयार करके अर्थव्यवस्था को शुरू करने का अवसर प्रदान किया है। इस वैश्विक महामारी के दौरान मनुष्यों की गतिविधियों में कमी होने की वजह से नीला आसमान, पक्षियों की चहचहाहट और डॉल्फिन का कौताहल इस बात का एहसास कराते हैं कि ठोस प्रयासों के साथ पृथ्वी को बचाना वास्तव में संभव है। यह वह समय है जब हम 22 अप्रैल को पृथ्वी अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर अपनी ”पृथ्वी को बचाने” की सब मिलकर प्रतिज्ञा लें।
भारत के सांस्कृतिक लोकाचार ने हमेशा से ही प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया है जो प्रलोभन के बजाए हमारी आवश्यकता पर आधारित है। हमारी प्राचीन कलाकृतियां इस बात का उल्लेख करती हैं कि किस तरह पांच प्राकृतिक तत्वों (पंचतत्वों) अर्थात् पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश के परिणामस्वरूप हमारी जीवन व्यवस्था मौजूद है। अथर्ववेद की भूमि सूक्त में माता पृथ्वी की दिव्य प्रकृति को खूबसूरती का वर्णन किया गया है:
यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्णयः संबभूवुः ।
यस्यामिदं जिन्वती प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु।।
(पृथवी माता का अभिनन्दन), यह महासागरों और नदियों का आपार संगम है, जब इसमें बुआई की जाती है तो यह हमें भोजन प्रदान करती है। इसकी वजह से हम जीवित हैं, यह हमारे जीवन के लिए फलदायक है।
ऐसे समय में, जब वैश्विक विकसित राष्ट्र उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल हो रहे हैं, तब भारत ने रास्ता दिखाया है और धरती माता को पुनर्स्थापित करने की दिशा में अपना संकल्प दिखाने के लिए पथप्रदर्शक के रूप में पहल की है। विकसित राष्ट्रों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है क्योंकि उन्होंने सौ वर्षों में CO2 उत्सर्जन का थोक में योगदान दिया है । भले ही हमने इस समस्या को जन्म नहीं दिया है, फिर भी एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में हम समाधान का हिस्सा बन रहे हैं।
पीएम मोदी के नेतृत्व में हमने कई फ्लैगशिप योजनाएं शुरू की हैं और 2030 की समयसीमा से पहले पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के रास्ते पर हैं । स्वतंत्र भारत के इतिहास के दौरान सबसे महत्वाकांक्षी और सफल पहल स्वच्छ भारत मिशन रहा है । स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से देश भर में खुले में शौच को समाप्त करके प्रमुख व्यवहारिक और संरचनात्मक परिवर्तन किए गए। इस मिशन ने न केवल अवसंरचनात्मक विकास में मदद की है, बल्कि यह सामुदायिक जुड़ाव के लिए एक मंच के रूप में भी उभरा हैऔर इस मिशन के तहत स्थानीय लोगों,सिविल सोसाइटियों के साथ मिलकर काम किया गया और राज्यों ने देश भर में एक जबरदस्त परिवर्तन किया। स्वच्छ भारत मिशन ने दोहरे लाभों को प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है, जिससे खुले में शौच और स्वच्छता की समस्या से निपटने में मदद मिली हैऔर साथ ही, ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के पैटर्नों में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में भी मदद मिली है। ‘खुले में शौच मुक्त’ (ओडीएफ) का दर्जा हासिल करने के बाद , अब हम ओडीएफ + स्थिति प्राप्त करने के लिए अग्रसर हैं, जिसका उद्देश्य ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन है।
वर्तमान सरकार ने हमारे जीवन और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में पानी के मूल्य का एहसास किया है। नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत, माँ गंगा को साफ करने के प्रयासों में जो तेजी आई है वह इससे पहले कभी नहीं देखी गई है। परिणामस्वरूप, संपूर्ण गंगा पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्जीवित हो चुका है और जीवन की धारा अब फिर से लौट आई है जो गंगा में डॉल्फ़िन की बढ़ती संख्या से स्पष्ट है। भूजल प्रबंधन (अटल भूजल योजना) और जल संरक्षण के प्रयासों (कैच द रैन) को पानी के पूरे जीवन चक्र का प्रबंधन करने के लिए मिशन मोड में लिया जा रहा है ।
उज्ज्वला स्कीम के भाग के रूप में, 8 करोड़ भारतीय परिवारों, विशेष रूप से ग्रामीण और गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराया गया है। इसने टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को अपनाकर CO2 उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसी तरह, ‘उजाला’ स्कीम के अंतर्गत 31 करोड़ एलईडी बल्बों का वितरण किया है जिससे CO2 उत्सर्जन में सीधे कमी आई है। भारत ऊर्जा के अपने स्रोतों में तेजी से विविधता ला रहा है और वर्ष 2030 तक 450 GW के एक महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को स्वयं अपने पर लागू किया है।
भूमि की उर्वरकता बढ़ाने के लिए, बेकार भूमि, जल निकायों और बंजर भूमि की बहाली से भूमि उर्वरकता अपक्षरण रोकने में लगातार प्रगति हुई है जैसा कि G-20 शिखर सम्मेलन के अंतर्गत प्रतिबद्ध है। सरकार के प्रयासों से भूजल के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देने के अलावा, नदी की सतह की सफाई, जैव विविधता, वनीकरण, और भूजल पुनर्भरण के संरक्षण में मदद मिली है। इसके मानव-केंद्रित दृष्टिकोण और हस्तक्षेपों के माध्यम से, हम 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने और आगे बढ़ने में सक्षम होंगे।
स्टीवर्ट उडल ने एक बार कहा था, “हवा और पानी, जंगल एवं वन्य जीवन की रक्षा करने की योजना वास्तव में मनुष्य की रक्षा करने की योजना है।” जलवायु संकट को दूर करने की जिम्मेदारी हम सभी की है। आइए हम अपनी संततियों के लिए स्थायी प्रथाओं के माध्यम से एक स्वस्थ, हरी-भरी धरती छोड़ने का वादा करें।