- गोरखपुर के प्रमुख चौराहे इंदिरा बाल बिहार पर भीख मांगने वाले बच्चे धड़ल्ले से कर रहे हैं सुलेशन का सेवन
- हार्डवेयर की दुकानों पर आसानी से मिल जाता है सुलेसन
विनीत राय, गोरखपुर।
कहते है कि नशा कोई भी हो वह इंसान को मौत की ओर ले जाती है। चाहे व शराब, ड्रग्स हो या कुछ और लेकिन युवाओं को शायद मौत का भी खौफ नहीं रहा। यहीं वजह है कि वे उन पदार्थो का उपयोग नशा पूर्ति के लिए कर रहे है जो नशीले पदार्थो से भी खतरनाक है।
शहर के प्रमुख चौराहे इंदिरा बाल बिहार पर इन दिनों सैकड़ों की संख्या में भीख मांगने वाले बच्चे, महिलाएं और पुरुष घूमते रहते हैं। इनमें कुछ बच्चे ऐसे हैं जो खुलेआम नशे का सेवन करते हैं। नशा वह भी कोई आम नहीं। ऐसा नशा जो मन मस्तिक सहित पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
ये बच्चे हार्डवेयर की दुकानों से सुलेसन खरीदकर उसे एक प्लास्टिक के पॉलिथीन में भरकर मुंह से खींचते हैं। इनमें कई लड़के ऐसे हैं जिन्हें खुलेआम पूरे दिन आप सुलेसन का सेवन करते हुए देख सकते हैं। इन्हें ना तो लोगों से डर है, न पुलिस प्रशासन भय।
नशापूर्ती के लिए सुलेसन का प्रयोग
इंदिरा बाल बिहार पर नाबालिग बच्चे नशे की पूर्ति के लिए सुलेसन का इस्तेमाल कर रहे हैं। सुलेसन का इस्तेमाल ऐसे हो रहा है जैसे हेरोइन और चरस का होता है। अहम बात है कि इस पर न तो सरकार की बंदिश है और ना ही परिवार के लोगों को जानकारी। दुकानदार निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए सब कुछ जानने के बाद भी सुलेसन बच्चों को बेच रहे है।
इसपर यकीन करना भी मुश्किल है कि कोई सुलेसन का उपयोग नशे के रूप में कैसे कर सकता है लेकिन यह सत्य है। जिस तरह पहले लोग कफ सीरप का उपयोग नशे के लिए करते थे वैसे ही आज सुलेशन का हो रहा है। जबकि यह सुलेसन कंपनियों पाइप आदि को जोडने के लिए बनाती है।
कैैसे होता है उपयोग
लोग सुलेसन को खरीदकर उसे सूती कपड़े में लगाकर चीलम में डाल देते है फिर उसमें आग लगाकर गांजे की तरह कश (पीना) लेते है। जिन्हे चीलम नहीं मिलती वे सीधे नाक से धुंआ निगलते है। इसका उपयोग करने वालों की माने तो यह शराब, गांजा और हेरोइन की तरह ही नशा करता है।
इंक रिमूबर पेंट का भी कर रहे उपयोग
यहीं नहीं स्कूली छात्र इंक रिमूबर, पेंट आदि का भी उपयोग नशे के लिए कर रहे है। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो रिमूबर आदि को बच्चे रूमाल में लगाकर सूंधते है इससे उन्हें नशे की अनुभूति होती है। कुछ समय बाद जब इसका नशा कम होता है तो वे दूसरे नशीले पदार्थो का उपयोग करने लगते है।
क्या हैं लक्षण
प्रायः देखा जाता है कि इनका नशा लेने वाले ब़च्चों के मुख और नाक के पास लालिमा होती है। अक्सर मुंख में छाले पड़ते हैं। नशा करने के बाद बच्चों में जमहाई, छींक, खांसी अधिक आती है साथ ही लार ज्यादा बनती है बाद में मुंह सूखने लगता है। आगे जाकर क्रोनिक होने पर मिचली आती है, भूख नहीं लगती और स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। नशा लेने के बाद बच्चे ऊर्जवान दिखते हैं तथा नशा उतरने पर सुस्त हो जाते हैं।
क्या है खतरा
नशा किसी रूप में किया जाय वह खतरनाक होता है। यदि कोई बच्चा पहली बार ज्यादा डोज ले लिया तो हृदय गति अनियमित हो जाती है, ब्लडप्रेशर घटता है। बच्चे की मौत भी हो सकती है। लगातार इनका नशा करने वाले बच्चे बाद में जाकर एल्कोहल, तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थो का सेवन करने लगते हैं।
क्या कहता है रिसर्च
डब्ल्युएचओ के मुताबिक एक बार नशे का आदी होने पर छूटने का चांस 35 से 85 प्रतिशत होता है। सर्वे के मुताबिक किशोरावस्था में आठ से दस प्रतिशत कोइ न कोई नशा करते हैं। इसमें आठ से दस प्रतिशत लोग तंबाकू, एक से 2.5 प्रतिशत ट्रेंक्लाइजर लेते हैं। दिल्ली के सीनियर छात्र दिल्ली के मोहन और सुंदरम द्वारा 1977-1978 में लिए गये 2032 छात्रों के सेंपल में 13 प्रतिशत एल्कोहल, 6 प्रतिशत तंबाकू, 4 प्रतिशत लोग टंकुलाइजर लेते पाये गये। वहीं नेशनल सेंपल सर्वे अर्गनॉइजेशन द्वारा 1995-1996 में किये गये सर्वे में 10 से 12 साल के बच्चों में आठ प्रतिशत बालक, दो प्रतिशत बालिका टोबैको, 1.3 प्रतिशत एल्कोहल लेते पाये गये। यह संख्या लगातार बढ़ती पाई गई। तीस नेहरू युवा केंद्र द्वारा किये गये सर्वे के मुताबिक नशा करने वाले पांच प्रतिशत लड़कियों और 19 प्रतिशत लड़कों में हाई रिस्क सेक्सुअल विहेबिया(उन्मुक्त असुरक्षित यौन व्यवहार) देखा गया। दस प्रतिशत लोग एंटी सोशल एक्टीविटी में लिप्त पाये गये।
इनमें है अधिक खतरा
नशे की प्रवित्ति का शिकार होने के लिए माहौल सबसे बड़ा कारक है। जिन बच्चों के माता पिता या स्कूल में शिक्षक नशा करते है उन बच्चों में यह खतरा सबसे अधिक होता है। इसके अलावा सड़क पर काम करने वाले बच्चे सबसे अधिक नशे के आदी होते हैं।
क्या कहते हैं चिकित्सक
वरिष्ठ चिकित्सक का कहना है कि यह युवाओं के लिए जहर है। यह ड्रग्स एडिक्ट होने की पहली सीढ़ी है। इंक रिमूबर, पेंट, सुलेसन आदि जिसमें कार्बनिक पदार्थो की मात्रा पायी जाती है उसके उपयोग से लोगों के मस्तिष्क को वैसा ही आनंद मिलता है जैसा ड्रग आदि के उपयोग से मिलता है। धीरे-धीर जब डोज बढ़ता है तो वे दूसरे नशीले पदार्थो की तरफ बढ़ते जाते है। यह बेहद खतरनाक है।
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